जिंदगी में हर तरह के मोड़ आते है कभी दुःख तो कभी सुख l ये सब बताते है की जीवन के प्रति हमारा नजरिया क्या है , इसी में तो जीवन बसता है l हमारी दृष्टी सकारात्मक है , मन में आशा है ,तो उत्साह ,ख़ुशी है l और सबसे बढ़कर जिंदगी है l
मै एक कहानी बताने जा रहा हूँ जो आपको जीवन से संघर्ष करना शिखायेगी बड़े से बड़ा दुःख भी छू मंतर हो जाएगा l बारह साल की लड़की जिसको गिलैंन -बैरे सिंड्रोम (जीबीएस ) की बीमारी हुई थी l
मिलेगे 15000/-सब दसवी पास को -बड़ी खबर
- इस बीमारी में शरीर अचानक लकवा ग्रस्त हो जाता है l
- वह लड़की अपने दोनों हाथ पैर बिलकुल भी नहीं हिला पा रही थी l
- साथ ही छाती और साँस की मासपेशियों के काम नही करने पर वेंटिलेटर पर रखना पड़ा था l
- इस बिमारी में होश और बुद्धिमता पर कोई फर्क नहीं पड़ता है l
- ज्यादातर रोगी दवाओ से जल्दी ठीक हो जाते है l
- केवल कुछ प्रतिशत ही होते है जो किसी कारण से ठीक नहीं हो पाते है l
- एक हफ्ते तक वेंटिलेटर पर रखने के बाद में डॉक्टर समझ गए की इसको अधिक समय तक वेंटिलेटर पर ही रखना होगा l
- हम सब आसानी से साँस ले पाते है बिना ताकत लगाए
- जैसा की साँस लेने की क्रिया खुद होती है इसलिए हमको कोई अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी होती है l
- लेकिन इस बच्ची को खुद साँस लेना ही सफलता से कम नहीं था
- इसको अपने स्कूल में ए ग्रेड लाना जरुरी नहीं था l
- खुद से साँस लेना ही इसके लिये बड़ी सफलता थी l
- Subhash Chandra Bosh
जैसा की लड़की को लम्बे समय से वेंटिलेटर पर रखा था जिसके कारण लड़की के को त्रेकियोस्तोमी ( गले वाले हिस्से से साँस की नली में छेद करके साँस के लिए रास्ता बनाना ) का निर्णय लिया गया l
आस है तो साँस है
वेंटिलेटर को साँस के उस नए रस्ते से जोड़ा गया अब नली को उसके मुहं से निकाल दिया गया था जैसा की कृत्रिम साँस गले वाले रास्ते से दिया जा रहा था l लड़की आँखे खोलकर वेंटिलेटर पर लेटी हुई थी l
कमजोरी आने के कारण वह केवल पलक और होठ ही हिला पाती थी रोजाना राउंड के समय जब मै उससे पूछता ” बेटी कैसे हो ? ” रोज धीमे से मुस्कराती और पलकों को झपकती जैसे कह रही हो की मै ठीक हूँ l
- वह दो महीने तक वेंटिलेटर पर रही ढेरो इंजेक्सन लगते और अनेको छोटे मोटे जांचो की तकलीफों से गुजरना पड़ता l
- लेकिन जब भी पूछा जाता की तो उसकी पलके एक ही जवाब देती की मै ठीक हूँ l
- मैंने इतना सहनशील और आशावादी मस्तिष्क आज तक नहीं देखा l
- धैर्य ,शहनशीलता , उम्मीद न हारना ,स्वय को प्रकृति के निर्णयों के प्रति समर्पित कर देना
- अपना रोना न रोना l
- देखभाल करने वालों पर भरोसा जैसे कितने ही गूढ़ दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक रहस्य इसके इस छोटे से जवाब मै निहित है ” मै ठीक हूँ l”
- उसने कभी भी इशारा नहीं किया की ये निकाल दो या अब बस करो l
- उसका आशावादी दिमाग सोचता था की ये लोग अपनी पूरी कोशिश कर रहे है l
- धैर्य रखना होगा जबकि सच ये था की उसकी कभी न ठीक होने की आशंका बहुत अधिक थी l
- उसके बावजूद भी वो एक बात कहती की मै ठीक हूँ l
- उसकी माँ रोती थी लेकिन उसकी आँखों में कभी भी आंसू नहीं दीखते थे l
- उसकी माँ ने बताया था की वह शिक्षक बनना चाहती थी l
- आईटीआई सूचना
- sms hospital online report
दो महीने वेंटिलेटर पर रहने के बाद उसका धैर्य रंग लाया उसकी साँस लेने की क्षमता में सुधार होने लगा और चार महीने बाद में वह पूरी तरह से ठीक हो गयी गले की नली को भी हटा दिया गया
वे एक हंस मुख और बातूनी लड़की थी l आजू बाजू बेड वालो से उसकी दोस्ती हो गयी थी उसको ये शिकायत बिलकुल भी नहीं थी की उसको ही ये बीमारी क्यों हुई है l
जब हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर वह जा रही थी तो मैंने पूछा की तुम बड़ी होकर क्या बनोगी
मै अपेक्षा कर रहा था की कहेगी ‘ शिक्षक ‘ लेकिन उसने मुस्कुराकर आंखे बंद कर ली और फिर गहरी साँस ली l साँस को कुछ देर रोककर रखा फिर धीमे से छोड़ी और बोली ‘ मजा आ गया l’
मेरा पूछना की क्या बनना है और उसका जवाब देना सयाना l जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ा गयी वह नन्ही टीचर l